संविदा कर्मचारियों के नियमित कारण को लेकर देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम बनाए गए हैं हाल ही में अलग-अलग राज्यों के अंदर संविदा कर्मचारियों के नियमित कारण को लेकर कर्मचारियों ने अलग-अलग आंदोलन किए हैं जिसमें कई कर्मचारी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अंदर भी गए हैं हाल ही के अंदर एक राज्य के हाईकोर्ट के द्वारा आदेश दिया गया है कि 10 साल तक सरकारी सेवा कंप्लीट करने वाले कर्मचारियों को परमानेंट किया जाए।
संविदा कर्मचारियों के लिए अलग-अलग राज्यों में नियम अलग-अलग बनाए गए हैं जैसे राजस्थान में 9 साल तक संविदा कर्मचारी सेवा कंप्लीट करते हैं तो उनको परमानेंट कर दिया जाता है वहीं हाल ही के अंदर कर्नाटक हाईकोर्ट के द्वारा भी एक बड़ा आदेश दिया गया है इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति एस सुनील दत्त यादव उनके द्वारा की गई न्यायालय ने भगवान दास और 15 अन्य द्वारा याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए आदेश जारी किया है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें की याचिका करता वॉल्वमैन और पंप ऑपरेटर के पदों पर काम कर रहे थे राज्य सरकार द्वारा 2006 में ठेका श्रम प्रणाली की समाप्ति के बाद उन्हें एक सेवा प्रदाता एजेंसी के माध्यम से अपनी सेवा जारी रखा 28 जुलाई 2006 को इसी तरह से 79 ठेका सिर्फ लोगों को भी रेगुलर किया गया था जिसे याचिका करता हूं की तरफ से नगर निगम से उन्हें लाभ देने का अनुरोध किया था लेकिन उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया वहीं 12 दिसंबर 2019 को उनके अनुरोध को खारिज करते हुए याचिका कर्ताओं ने उमा देवी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आधार बनाते हुए अपनी सेवाओं को रेगुलर करने की मांग की।
इसके बाद में याचिका कर्ताओं ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की न्यायमूर्ति सुनील दत्त यादव ने कहा कि याचिका करता हूं उन्हें एक ठेकेदार के माध्यम से वैधानिक प्राधिकरण की सेवाएं प्रदान की है जैसे कि आउटसोर्स एजेंसी के नाम से जाना जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने संविदा कर्मचारियों को दी नियमित सेवा की सौगात
नगर निगम में भर्ती पर लगे प्रतिबंधों के चलते ये संविदा कर्मचारी लंबे समय से स्वीकृत पदों पर कार्यरत थे। अदालत ने स्पष्ट किया है कि सर्वोच्च न्यायालय पहले ही ठेका और आउटसोर्सिंग प्रणाली को सीधे तौर पर भर्ती प्रक्रिया से बचने का उपाय मान चुका है। अदालत का कहना है कि याचिकाकर्ता केवल निरंतर सेवा के हकदार हैं और उनकी सेवा अवधि सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभों में जोड़ी जाएगी। न्यायमूर्ति यादव ने अपने फैसले में यह तय किया कि इन कर्मचारियों की सेवा को नियमित करने का आदेश उसी तिथि से लागू माना जाएगा जब इन्होंने दस वर्ष की सतत सेवा पूरी कर ली थी। यह ऐतिहासिक फैसला 28 वर्षों से कार्यरत इन ठेका कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत बनकर सामने आया है और यह दूसरे राज्यों के संविदा कर्मियों के लिए भी मिसाल बन सकता है।
कोर्ट ने शीर्ष अदालत के पुराने आदेश का किया अनुसरण
न्यायालय ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा कि संविदा व आउटसोर्सिंग व्यवस्था को अब सीधी भर्ती की प्रक्रिया को टालने के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा रहा है जो कर्मचारियों के हित में नहीं है। ऐसे में अदालत ने स्पष्ट किया कि इन कर्मचारियों को केवल सेवा की निरंतरता का लाभ मिलेगा और उनकी पूरी सेवा अवधि सेवानिवृत्ति से जुड़ी सुविधाओं में गिनी जाएगी। साथ ही, जिन कर्मचारियों ने 10 साल की निरंतर सेवा पूरी कर ली है उन्हें उसी तिथि से सभी लाभ मिलेंगे जब उनका यह कार्यकाल पूरा हुआ था।